वो बंधन – डॉ एच सी विपिन कुमार जैन “विख्यात”
अपनी समस्यायें,
लाख प्रयत्न करने पर सुलझ न पायें।
याद आयें,
वो बंधन फिर उलझ और उलझ जाएं।
सोचता हूं,
अपने जब पराये हो जायें।
जिंदगी में,
अपने जब अंधियारे घर कर जायें।
क्यूं ना हम,
उनको दिल से जुदा कर पायें।
भूलाने की कोशिश,
उनको भूल जायें पर क्यूं न भूल पायें।
इस डगर पर,
प्रश्न अजीब समझ ना पायें।
उनको तो क्या,
अपने आप को खुद व खुद समझ ना पायें।
पहेली सी,
जिंदगी और मौत बन जायें।
इक रचना की चार लाइनें “विख्यात”
पर क्यूं सुलझ और सुलझ ना पायें।